दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल जो 2014 से दिल्ली की सत्ता में क़ाबिज़ है वह पूरे देश में तो सारे चुनाव एक साथ करवाकर विपक्षी सरकारों के अस्तित्व के लिए चुनौती बनना चाहता है पर पिछले दो सालों से अपना ही एक अदद पार्टी-अध्यक्ष नहीं चुन पा रहा है ! 2019 के बाद से जे पी नड्डा ही पद पर बने हुए हैं। उनका आधिकारिक कार्यकाल भी 2023 में समाप्त हो चुका है ।
सवाल यह है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का नारा बुलंद करने वाली पार्टी अपने ही संगठन में बूथ, मण्डल, ज़िला और राज्य-स्तर पर चुनाव संपन्न क्यों नहीं करवा पा रही है ? कोई तो कारण होगा ? क्या पार्टी को उसके लगभग बीस करोड़ सदस्यों में कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पा रहा है या फिर अंदरखाने कुछ ऐसा चल रहा है जिसकी जानकारी बाहरी दुनिया को नहीं मिल पा रही है ? नये अध्यक्ष को लेकर नया दावा यह है कि मार्च महीने में चुन लिया जाएगा !
अनौपचारिक चर्चाओं के ज़रिए जो बात छनकर बाहर आ रही है वह यह है कि नये अध्यक्ष के नाम पर नागपुर और दिल्ली के बीच सहमति नहीं बन पा रही है और उसी के चलते राज्यों में संगठनात्मक चुनावों को पूरा करने की गति धीमी कर दी गई है। लोकसभा चुनावों के दौरान संघ की ज़रूरत को लेकर नड्डा के द्वारा दिये गए बयान के बाद से ही भाजपा-नेतृत्व के प्रति नागपुर की नाराज़गी बनी हुई है। संघ शायद चाहता है कि पार्टी प्रमुख के पद पर उसकी पसंद का ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो भाजपा में नागपुर की ज़रूरत को स्थापित कर सके !
आश्चर्यजनक है कि जिस पार्टी के नेता लोकसभा चुनावों के दौरान कहते रहे कि देश के संविधान को बदलने की ज़रूरत है वे ही अपना नया अध्यक्ष चुनने में हो रहे विलंब को लेकर पार्टी-संविधान की प्रक्रिया के अनुसार संगठनात्मक चुनाव करवाए जाने की आड़ ले रहे हैं !