पिछले 11 साल से यह मासूम सवाल हर उस व्यक्ति का पीछा कर रहा है, जो इस देश की निर्वाचित सरकार से सवाल पूछने का अपना बुनियादी नागरिक उत्तरदायित्व निभा रहा है। आप मोदी विरोधी क्यों हैं, इस मासूम सवाल का उत्तर आसान शब्दों में दे रहा हूं-
1. सरकार से सवाल पूछना किसी नेता का विरोध नहीं है। लेकिन जब किसी व्यक्ति को ही पूरी सरकार नहीं बल्कि देश का पर्याय बनाने की कोशिश की जाये तो गंभीर समस्या खड़ी होती है। फिर आपको तय करना होता है कि आप किसी एक व्यक्ति के साथ हैं या देश के साथ हैं क्योंकि कोई एक व्यक्ति चाहे कुछ और हो देश कतई नहीं हो सकता है।
2. नेता नरेंद्र मोदी का विरोध इसलिए है क्योंकि उन्होंने 11 साल में एक बार भी अपने किसी भाषण में राष्ट्रीय एकता, प्रेम, शांति, सहिष्णुता और सद्भाव जैसे उन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जिनपर इस देश की बुनियाद टिकी है।
3. दूसरी तरफ उन्होंने समाज को धार्मिक पहचान के आधार पर स्थायी तौर पर विभाजित करने के लिए रात-दिन काम किया है ताकि अपने किसी कामकाज का हिसाब ना देना पड़े और बिना किसी उत्तरदायित्व अनंत काल तक सुख भोगा जा सके।
4. नरेंद्र मोदी की पूरी राजनीति इस देश के नागरिकों के भावनात्मक भयादोहन यानी इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर टिकी हुई है। उनकी पार्टी ने सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए जातीय और क्षेत्रीय अस्मिताओं को भी एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया है। उन्होंने नागरिकों को या तो डराया है, या भड़काया है, उनमें कभी एकजुटता भरने काम नहीं किया है, जो प्रधानमंत्री सरीखे किसी व्यक्ति का बुनियादी उत्तरदायित्व है।
5. नरेंद्र मोदी की सरकार ने किसी सवाल का जवाब देने के बदले धार्मिक या राष्ट्रीय प्रतीकों के पीछे छिपने की रणनीति को इस देश की केंद्रीय राजनीतिक धारा बना दिया है। इस काम में उन्होंने मीडिया का इस कदर दुरुपयोग किया है कि लोकतंत्र का चौथा खंभा प्रोपेगैंडा मशीन बन चुका है और इस देश के आम नागरिकों के हितों के खिलाफ रात-दिन काम करने लगा है।
6. सिर्फ मीडिया नहीं बल्कि उन्होंने इस देश सारी संस्थाओं को भ्रष्ट किया है। सरकार के पक्ष में निर्णय देकर तुरंत कोई पद या प्रमोशन लेने वाले जजों की लिस्ट इतनी लंबी है कि आप गिनते-गिनते थक जाएंगे। बीजेपी शासित ज्यादातर राज्यों में पुलिस तंत्र का अपराधीकरण हो चुका है। देश की कई अदालतों तक ने इसका संज्ञान लिया है।
7. इस सरकार ने इतनी ज्यादा चुनावी धांधलियां की है कि पूरी निर्वाचन प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ गई है। राजनीतिक विरोधियों और आलोचना करने वालों का ऐसा संस्थागत दमन इमरजेंसी के दौर में भी नहीं हुआ था।
8. 1991 के बाद से इस देश के तमाम चुनाव आर्थिक विकास के एजेंडे पर लड़े गये थे। खुद नरेंद्र मोदी 2014 में विकास के नाम पर जीतकर आये थे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने सांप्रादायिक विभाजन को स्थायी मुद्दा बना दिया और केंद्र से लेकर राज्य तक के हर चुनाव इसी मुद्दे पर लड़े। इस प्रवृति ने आर्थिक विकास के एजेंडे को पीछे धकेल दिया और नतीजे में भारत हर स्तर पर पिछड़ने लगा। बेरोजगारी अपने उच्चतम स्तर पर है और एआई जैसे बड़े बदलावों से उत्पन होनेवाली चुनौती को लेकर सरकार के पास कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है।
9. नरेंद्र मोदी के पास तात्कालिक चुनावी लाभ से आगे देखने की दृष्टि नहीं है। इसलिए उन्होंने आतंरिक सुरक्षा से लेकर विदेश नीति तक सांप्रादायिकरण किया है। अपने ही घर में एक आम भारतीय नागरिक असुरक्षित है और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत पूरी तरह से अलग-थलग पड़ चुका है।
10. सरकार की तमाम नीतियां जन-विरोधी और खासतौर पर एसटी-एसी-ओबीसी और अल्पसंख्यक विरोधी हैं। शिक्षा के स्तर में असाधारण गिरावट आई है। उच्च शिक्षा इतनी महंगी हो चुकी है कि किसी निम्न-मध्यमवर्गीय व्यक्ति की पहुंच से बाहर है। ऐसा लगता है कि सरकार कम पढ़े लिखे नौजवानों की ऐसी भीड़ तैयार करना चाहती है, जो सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाएं दे सकें किसी और काम के ना रहें।
11. नरेंद्र मोदी और उसकी पार्टी ने भारतीयता शब्द को आहिस्ता-आहिस्ता सनातन या हिंदू शब्द से रिप्लेस करने की कोशिश की है, जो अपने आपमें राष्ट्र विरोधी या संविधान विरोधी है। भारतीय, हिंदुस्तानी या इंडियन कोई एक शब्द नहीं है बल्कि हमारी हज़ारों साल पुरानी हमारी समस्त शुभेच्छाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है। इसे पचा जाने की कोशिश का नतीजा आग को निगलने जैसा होगा।
12. नरेंद्र मोदी की बीजेपी ने हिंदू धर्म की शास्त्रीयता को नष्ट किया है। इस देश के नागरिकों को यह मानने को विवश किया है कि उन्हें अच्छा हिंदू होने का प्रमाण पत्र उन्हें आरएसएस से लेना पड़ेगा। शंकराचार्य जैसे परंपरागत हिंदू धर्मगुरुओं को पार्श्व में धकेलकर उनकी जगह मदारी सरीखे उन ठग, धूर्त और लंपट बाबाओं को आगे किया गया है, जो वोट दिलाने या राजनीतिक गोलबंदी करने में मददगार साबित हो सकते हैं। इस प्रवृति ने हिंदू धर्म और देश दोनों का इतना नुकसान किया है कि उसकी भरपाई हो पाना कठिन है।
13. नरेंद्र मोदी ने संसदीय लोकतंत्र को कमजोर किया है। निर्वाचित प्रधानमंत्री होने के बावजूद वे ना तो संसद के प्रति उत्तरदायी हैं ना इस देश की आम जनता के प्रति जवाबदेह हैं। बड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर संसद में चर्चा होने ना होने देना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।
14. नरेंद्र मोदी दुनिया के इकलौते ऐसे राजनेता हैं, जिन्हें गंभीरता से लिये जाने पर उनके समर्थक ही बुरा मान जाते हैं। वे ऐसे अनूठे राजनेता हैं, जिन्हें उनके कोर वोटरों ने काम ना करने और उत्तरदायित्व से परे रहने का मेंडेट दिया है। इसलिए अगर सरकार से कोई भी जरूरी सवाल हो तो विरोध की पहली आवाज मोदी समर्थकों की ओर से आती है। ऐसे में इस देश के भविष्य की कल्पना आप कर सकते हैं।
15. नरेंद्र मोदी देश की गाड़ी को सांप्रादायिकता की पटरी पर दौड़ा रहे हैं और देश से यह मानने को कह रहे हैं कि अगला स्टेशन फाइव ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी है। उनके इस दावे को मानना औसत बुद्धि का अपमान है। इस देश की जनता को तय करना है कि वो कायरता या नरेंद्र मोदी की गलत नीतियों के विरोध में एक को चुने। हर देशवासी वो बात याद रखनी होगी जो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अगस्त क्रांति मैदान में गांधीजी ने कही थी—आजादी कायरों को नहीं मिलती।