कथा 1934 से शुरू होती है।
जब गांधी ने हरिजन यात्रा शुरू की।
पूना पैक्ट में, सेपरेट एलेक्टोरेट से 71 सीट की मांग छोड़ने के बदले, संयुक्त हिन्दू कोटे से 149 सीट, दलितों के लिए आरक्षित करने का समझौता,अम्बेडकर से हुआ।
पर यह सीटें, सवर्णों की जेब से निकलनी थी। पहले धर्मनिरपेक्षता (मुस्लिम प्रेम), अब अछूतो की तरफदारी..
गांधी हद से बाहर जा रहे थे।
उनपर पूना में बम फेंका गया।
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वे बच गए, पर काल के कपाल पर, गांधी का डैथ वारंट, 1934 में लिखा जा चुका था।
इंडियन फासिस्ट उन्हें मारने का मन बना चुके थे। तो उसी वर्ष, फासिज्म की गंगोत्री, इटली में एक पिस्टल तैयार हुई।
बरेटा M-1934 तब दुनिया की आधुनिकतम पिस्टल थी। सीरियल नम्बर 606824 की पिस्टल, मुसोलिनी के किसी अफसर को जारी हुई।
बरेटा, छोटी थी, पर अचूक और ताकतवर.. एक किस्म की एलीट गन, जो मुसोलिनी के खास अफसरों को ही दी जाती।
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खास अफसर, खास अभियानों पर भेजे जाते हैं। तो वह अफसर, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, इथियोपिया पर हमले में भेजा गया।
क्योकि, मुसोलिनी को अखण्ड रोमन साम्राज्य बनाना था।और इतिहास में मिस्र से इथियोपिया तक,सब रोमन इलाके थे।
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इथियोपिया ने अपनी आजादी की लड़ाई, बड़ी मजबूती से लड़ी।उनकी मदद की ब्रिटिश फौजो ने।
और ब्रिटिश फौज की मदद तो ग्वालियर के सिंधिया 1857 से करते आये हैं।
यहां इथियोपिया में भी ग्वालियर के लांसर्स मदद को मौजूद थे।
पिस्टल नम्बर 606824 रखने वाला इटालियन अफसर मारा गया, या समर्पण किया, कोई नही जानता।
पर उसकी पिस्टल, 4th ग्वालियर इन्फेंट्री के कमांडर, वी बी जोशी ने विजय स्मृति के रूप में रख ली।
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फिर भारत मे उसे बेच दिया जगदीश गोयल को। तब यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ ग्वालियर मे, हथियार रखने के लिए, USA की तरह किसी लाइसेंस की जरूरत नही थी।
तो अब पूछिये गोयल साहब कौन।
तो जनाब ये, हिन्दू राष्ट्र सेना के मेम्बर थे।
ये कैसी सेना?? किसने बनाई?
सेना बनाने वाले महाशय थे दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे। इस सेना को हिन्दू महासभा का मिलिटेंट दस्ता माना जाता था।
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तो परचुरे साहब एक दिन गोयल साहब के पास आये। बोले- ग्राहक आया है, पिस्तौल बेच दो,अच्छे दाम मिलेंगे।
500 रुपये में सौदा हुआ। गोयल साहब ने, पिस्तौल, गोडसे साहब को बेच दी।
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1934 में लिखे गए डेथ वारंट को कारित करने की 6 कोशिशें हुई। कभी छुरा, कभी बम, कभी रेल की पटरी उखाड़ी गई।
गोडसे साहब इसमे से 4 प्रयास में शामिल थे।पर गांधी के डैथ वारंट पर लिखा था- मौत इटली से स्मग्ल विचारधारा के हाथों, इटली से स्मग्ल हथियार से ही होगी।
जब विचार, हथियार, मक़तूल और कातिल एक जगह मिले..
वह 30 जनवरी 1948 था।
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गांधी 1914 में भारत आये। तब वे 45 बरस के थे। सत्याग्रह, जेल, आंदोलन, नेगोशिएशन सभी चीजों में एक्सपर्ट हो चुके थे।
याने 64 कलाओं से युक्त, एक मैच्योर्ड शख्स थे। अपनी प्रेरणा और नेतृत्व से 30 साल में पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्रविड़, उत्कल, बंग को मानसिक रूप से एक देश बना दिया।
सरदार पटेल को भूमि पर भारत का बिस्मार्क कहते है। वह काम,मानसिक स्तर पर, इस देश में गांधी ने किया।
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अब 79 की उम्र में वह बूढ़े, हताश, अनमने शख्स थे। पत्नी की मृत्यु के बाद एक डैथ विश दिखाई देती है।
कहीं ठहरते नही थे। बेचैन आंखों के सामने देश बंटवारे से गुजर गया। कभी नूह, मेवात, कभी नोआखाली, कभी बाम्बे, कभी कलकत्ता…
अनशन शान्ति के लिए होते थे..
या इस देह से मुक्ति के लिए??
मोहन की लीला, मोहन जाने..
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नाथूराम ने उस जर्जर, मृत्युकामी बूढ़े को मुक्त किया। देश पर उपकार किया।
गांधी की लाश, गले तक चादर उढ़ाकर रखी गयी थी। पुत्र आया, उसने चादर सीने के नीचे तक खींच दी।
कहा-ये गोलियों के घाव, बरेटा की 3 गोलियां, अहिंसा के पुजारी के सीने के मेडल हैं। इसे दुनिया को देखने दो।
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गोडसे का उपकार यूँ, कि वो मेडल, वो गोलियों के घाव,उनसे रिसा रक्त, इस देश के गिर्द रक्षा कवच बन गया।
जिंदा बापू की आवाज अनसुनी हो रही थी।
गोलियों के धमाकों ने उस आवाज को सदियो के पार गुंजा दिया।गांधी के संदेश,गांधी के लहू में सनकर, मानवता के माथे पर सुनहरा हर्फ बन गए।
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और जिसने गोली चलाई..
वह विचारधारा, वो खूनी सोच, खूनी फलसफा, उस फासिस्ट राष्ट्रवाद ने गांधी के लहू को कालिख बनाकर,अपने मुंह पर पोत लिया।
अंधकार में 50 सालों के लिए खो गया।
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इन 50 साल, देश ने दिल जोड़े। नफरतें छोड़ी, भारत का निर्माण किया। आजादी, समानता, जनाधिकार बांटे।गांधी के सपने की ओर,कदम बढ़ाए।
आज गांधी पर फिर गोलियां चल रही हैं।
गोडसे फिर गांधी को तलाश रहा है।
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तब न थे आप,आज हैं।
अगर बन सकें, तो इस बार,
गांधी का कवच..
आप बनिए।