1855 के दशक में शक्तिशाली और कठोर अंग्रेज शासक के विरुद्ध , संथाल जनजाति की हूल क्रांति आदिवासी अधिकार और अस्मिता के संरक्षण की लड़ाई थी 1855 में संथाल जनजाति के सिद्धो – कान्हू , चांद, भैरव और उनकी बहनों फूलो और झानो ने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में “अबूआ दिशूम अबूआ राजा “(हमारा – देश हमारा शासन) घोषणा कर , हूल क्रांति का बिगुल फूंका था । 30 जून 1855 को झारखंड के साहिबगंज जिले का भोगनाडीह गांव से शुरू हुई इस संग्राम में हज़ारों की संख्या में वीर आदिवासी शहीद हुए थे । आज देश आज़ाद है , किंतु आज भी अशिक्षा , गरीबी , ग़लत जानकारी, प्रलोभन ,छल कपट, इत्यादि , जैसे शत्रु आदिवासी समाज के अधिकार और अस्मिता को कमजोर कर रहे हैं हुल संथाली भाषा है जिसका अर्थ है “क्रांति” । आज भी समाज को शिक्षा क्रांति और पारंपरिक क्रांति की आवश्यकता है !
आज भी समाज को शिक्षा क्रांति और पारंपरिक क्रांति की आवश्यकता है ! – निशां उरांव
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