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उमेश कुमार झा, झारखण्ड लाइफ। 10/11/2023 :16:20
धनतेरस, दिवाली से भाई दूज… पांच दिनों के त्योहार की क्या है पौराणिक कहानी, जानें हर दिन से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्‍यताएं और शुभ मुहूर्त..
 
पांच दिनों के इस महापर्व में दिवाली सबसे खास होती है. वहीं इस पंचदिवसीय पर्व में हर दिन अलग अलग देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है. धनतेरस के दिन से ही खरीदारी शुरू हो जाती हैं और यम द्वितीया पर ये पर्व समाप्त होता है. इन पूरे पांच दिनों तक सभी ओर भक्ति और खुशी का मौहाल बना रहता है. और कई दिन पहले से ही इसकी तैयारियां भी शुरू हो जाती है.


दिवाली सिर्फ खुशियां मनाने का नहीं, खुशियां बांटने का त्योहार है। दिवाली है तो जगमगाते दीये हैं, लाइट्स हैं, मिठाइयां हैं और दोस्तों-रिश्तेदारों को दिए जाने वाले ढेरों गिफ्ट्स भी हैं। पर इस बार थोड़ा ठहरते हैं। दोस्तों-रिश्तेदारों को तो आप दिवाली पर हर साल गिफ्ट्स देते ही आए हैं। इस बार अपनी ये लिस्ट कुछ बदलकर देखिए ना। उन लोगों को भी गिफ्ट्स दें, जो साल भर आपका जीना आसान बनाते हैं।

 

दिन-रात, सर्दी-गर्मी में हमारी सिक्योरिटी के लिए गेट पर बैठे आपके गार्ड भैया हों, या फिर आपके घरों को दिवाली के लिए चमकाने वालीं हाउस हेल्प दीदी। आपके कंपनी या ऑफिस के वर्कर्स या स्टाफ हो जो आपके लिए काम करते है.. जिनके बॉस या मालिक आप हो.. या आपके गाडी के ड्राईवर.. जो हर सफ़र में आपको सहजता से ले जाते है.. आपके घर के पौधों को हरा-भरा रखने वाले माली से लेकर.. पेपर वाले भैया, दूधवाले भैया और हर उस शख्स को याद से इस लिस्ट में शामिल कीजिये, जिनसे आपकी जिंदगी आसान होती है।

तो इस दिवाली खुशियां मनाइए ही नहीं, खुशियां बांटिए भी। पैसे तो जरुर खर्च होंगे.. पैसे तो आप ऐसे भी कई जगहों पर, पार्टियों में तिर्थस्थलों में खर्च कर देते होंगे.. पर ये खर्च सबसे संतोषजनक होगा.. यकीन मानिये उनको खुशियाँ बाटकर आपको भी अन्दर से बहुत ख़ुशी होगी..

 

नमस्कार.. जोहार.. आप सभी पाठकों को मेरी पुरे परिवार, पूरी टीम की और से धनतेरस और दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं.. परमात्मा आपको ढेर सारी खुशियाँ वैभव और समृधि दे.. और आज की इस स्टोरी में आपको में धनतेरस, दिवाली से भाई दूज तक पांच दिनों तक चलने वाली इस त्योहार की पौराणिक कहानी और मान्यताओं के बारे में बताऊंगा जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे.. आपको मैं बताऊंगा हर दिन से जुड़ी पौराणिक कथा और मान्‍यताएं क्या है.. और किस प्रकार से दिवाली 5 दिन का त्यौहार है.. तो इस स्टोरी को अंत तक जरुर पढ़िए.. इसे अन्त तक पढ़ना आपके लिए काफी दिलचस्प होगा..

 

भारत – नेपाल में पूरे देश में  और कई पडोसी देश जहाँ हिन्दू समाज या भारतीय रहते हने हर जगह दिवाली की धूम है. दिवाली का त्योहार पूरे 5 दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस के पर्व के साथ होती है और भाई दूज के दिन ये महापर्व समाप्त हो जाता है. 5 दिन तक चलने वाले इस त्योहार में हर दिन का अपना अलग महत्व और मान्‍यताएं हैं.

 

दीपावली के 5 दिन होने के पीछे भी मान्यताएं है.. कहते हैं कि भारतीय काल गणना सतयुग से शुरू होती है. इस युग में पहली बार दिवाली पर्व मनाया गया था. इसके बाद आए त्रेता और द्वापर युग में राम और कृष्ण के साथ इसमें नई घटनाएं जुड़ती गईं और यह पांच दिन का पर्व बन गया. यह पांच दिन का महापर्व विशेषतः लक्ष्मी जी, भगवान राम और कृष्ण की पूजा के लिए समर्पित होता है.

 

पांच दिनों का महत्व ?

पांच दिनों के इस महापर्व में दिवाली सबसे खास होती है. वहीं इस पंचदिवसीय पर्व में हर दिन अलग अलग देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है. धनतेरस के दिन से ही खरीदारी शुरू हो जाती हैं और यम द्वितीया पर ये पर्व समाप्त होता है. इन पूरे पांच दिनों तक सभी ओर भक्ति और खुशी का मौहाल बना रहता है. और कई दिन पहले से ही इसकी तैयारियां भी शुरू हो जाती है.

चलिए आपको एक एक करके धनतेरस से लेकर भाई दूज तक पंचदिवसीय महापर्व की तिथि और इन सभी दिनों का महत्व को बताता हूँ...

 

पहला दिन (धनतेरस)

·        दीपावली के आने वाले पर्वों में पहला पर्व है कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी। यानी धनतेरस.. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन सबसे पहले सतयुग में कार्तिक माह के कृष्ण की पक्ष की त्रियोदशी तिथि के दिन समुद्र मंथन से चौदह रत्नों में से एक आयुर्वेदाचार्य भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे. इनके दृष्टिपात से सूखी खेती हरित होकर लहलहा उठती थी, मृत जीवित हो आता था। तब से ही धनतेरस का पर्व शुरू हुआ.

·        वैद्यगण इस दिन धन्वंतरीजी का पूजन करते हैं और वर मांगते हैं कि उनकी औषधि व उपचार में ऐसी शक्ति आ जाए जिससे रोगी को स्वास्थ्य लाभ हो। । गृहस्थ इस दिन धनतेरस पर अमृत पात्र को याद कर नए बर्तन और नई चीजें घर पर नए बर्तन घर में लाकर धन तेरस मनाते हैं।

·        पौराणिक मान्यता के अनुसार आज के दिन ही बहुत समय से चले आ रहे मनो मालिन्य को त्याग कर यमराज ने अपनी बहन यमुना से मिलने हेतु स्वर्ग से पृथ्वी की ओर प्रस्थान किया था। गृहणियां इस दिन से अपनी देहरी पर दीपक दान करती हैं, जिससे यमराज मार्ग में प्रकाश देख कर प्रसन्न हों और उनके गृहजनों के प्रति विशेष करुणा रखें। इसलिए इस दिन दीप दान करने की भी मान्यता है, जिससे यमराज प्रसन्न होकर अपनी कृपा बनाएं रखें.

दूसरा दिन (नरक चतुर्दशी)

·        दीपावली के आने वाले पर्वों में दूसरा पर्व है चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर यगु में इसी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध किया था. और उसकी कैद से सोलह हजार कन्याओं व अन्य कैदियों को मुक्त किया था। तभी नरकासुर ने श्री कृष्ण से विनयपूर्ण अंतिम इच्छा प्रकट की। भगवान श्री कृष्ण ने वर दिया कि यह दिन सदैव नरक चौदस के नाम से याद किया जाएगा। तब से ही नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है.

·        इसी दिन भगवान विष्णु ने पराक्रमी व महान दानी राजा बलि के दंभ को अपनी कूटनीति से वामन रूप धारण कर नष्ट किया। इस वजह से इसे रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। नरक चर्तुदशी के दिन पांच या सात दीये जलाने की भी परंपरा है.

तीसरा दिन (दिवाली)

·        दीपावली के आने वाले पर्वों में तीसरा और धूम धाम से मनाये जाने वाला पर्व है दिवाली या दीपोत्सव या दीपावली। इस दिन लक्ष्मीपूजन होता है.. महादेवी लक्ष्मी और गणेश की साथ पूजा की जाती है.. यह अनेक घटनाक्रमों से युक्त दिन भी है। यानी कई घटनाक्रम इस दिन को विशेष बनाते है.. पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग में सबसे पहले कार्तिक मास की अमावस पर लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्रकट हुए थीं. पौराणिक कहानी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने देवी को पत्नी के रूप में स्वयं वरण किया। और भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की शादी हुई थी. तब से ही दिवाली मनाने की शुरुआत हुई.

·        बाद में त्रेतायुग में इसी कार्तिक अमावस्या के दिन श्रीराम वनवास से लंका विजय कर, सीता-लक्ष्मण-हनुमान व अन्य साथियों के साथ आकाश मार्ग से अयोध्या घर लौटे थे. यह दिन महालक्ष्मी पूजन के लिए भी विशेष होता है.

·        महालक्ष्मी पूजन के साथ साथ ज्योति का पावन पर्व है 'दीपावली'। काम-क्रोध-लोभ-मोह के रूप में जो अंधकार अंत: यानि हमारे अन्दर में स्थित है, उसे दूर कर अंतर्मन को आलोकित करने की क्षमता मां लक्ष्मी की ही कृपा से भक्त को प्राप्त होती है। और आपके अंत: यानी अन्दर व बाह्य यानी बहार प्रकाश का एकाकार हो जाना जीवन का सार्थक होना है। और लक्ष्मी की कृपा के बिना यह संभव नहीं है।

·        आपको बता दूँ.. समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक सबसे विशिष्ट रत्न है लक्ष्मी। लक्ष्मी अनुपम सुंदरी, सुवर्णमयी, तिमिर-हारिणी वरदात्री, प्रसन्न-वदना, शुभा और क्षमादायी हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रकाशमयी देवी लक्ष्मी अमावस की रात्रि के घटाघोप अंधकार को अपने प्रकाशपुंज से चीरती हुई समुद्र से प्रकट हुईं थी और समस्त वातावरण को ज्योतिर्मय कर दिया। और इसी काली अमावस्या की रात्रि से हम सभी प्रतिवर्ष जूझते हैं। इसलिए भी समस्त वातावरण को दीपकों की कतारों से आलोकित कर हम युगों से लक्ष्मी का स्वागत और पूजन करते हैं।

·        और कई घटनाक्रमों में.. जैन चौबीसवें तीर्थंकर अहिंसा की प्रतिमूर्ति भगवान महावीर स्वामी भी इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने भी आज ही के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। राम के स्वरूप को मानने वाले स्वामी रामतीर्थ परमहंस का जन्म और जल समाधि दोनों ही दिवाली के दिन हुए। सिखों के छठे गुरु हर गोविंद जी और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य ने भी आज ही के दिन विजय पर्व मनाया था।

तिथि और शुभ मुहूर्त

·        तिथि और शुभ मुहूर्त की बात करू तो... इस वर्ष 12 नवम्बर को दीपोत्सव धर्मशास्त्र अनुसार प्रदोषकाल एवं निशीथकाल (मध्यरात्रि) व्यापिनी व स्वाति नक्षत्र से युक्त अमावस्या में मनाया जाएगा। इस बार का दीपावली का ऐसा संयोग कई वर्षों बाद बना है। दीपावली महापर्व में लक्ष्मी पूजन का प्रदोष काल में सर्वाधिक महत्व है। इसमें प्रदोषकाल गृहस्थियों एवं व्यापारियों के लिए तथा निशीथकाल यानी मध्यरात्रि या अर्धरात्रि काल आगम शास्त्र विधि से पूजन हेतु उपयुक्त है। चतुर्दशी या प्रतिपदा में दीपावली-महालक्ष्मी पूजन आदि कृत्य करने का शास्त्रीय विधान नहीं है।

·        इस वर्ष विक्रम संवत् 2080 में कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार 12 नवंबर सन् 2023 को अपराह्न 02 बजकर 45 मिनट से ही आरंभ होकर अगले दिन सोमवार को अपराह्न 02 बजकर 56 मिनट तक विद्यमान रहेगी। दीपावली पूजा में विहित स्वाति नक्षत्र भी सूर्योदय से लेकर रात्रि 02 बजकर 50 मिनट तक भोग करेगा। प्रदोषकाल जिसका दीपावली-महालक्ष्मी पूजन मे सर्वाधिक महत्व होता है, सायंकाल 5 बजकर 27 मिनट से रात्रि 8 बजकर 09 मिनट तक रहेगा

चौथा दिन (गोवर्धन पूजा)

·        दिपावली के आने वाले पर्वों में चौथा पर्व है कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा यानी गोवर्धन पूजा । यह पर्व भारत की कृषि-प्रधानता, पशुधन, उद्योग व व्यवसाय का प्रतीक है। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में दिवाली के अगले दिन यानी  प्रतिपदा तिथि पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी. और इसी दिन श्रीकृष्ण ने अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को छत्र की तरह धारण करके वनस्पति और लोगों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की थी। तब से ही यह दिन पांच दिन के इस महापर्व का हिस्सा बना.

·        यह गोवर्धन पर्व अन्नकूट के नाम से विख्यात है। इस दिन कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं और दूध, दही, घी का भोग भगवान को लगाया जाता है. साथ ही चहुंमुखी विकास व वृद्धि की कामना से दीप जलाए जाते हैं। कई शिल्पकार व श्रमिक वर्ग आज के दिन विश्वकर्मा का पूजन भी श्रद्धा भक्तिपूर्वक करते हैं।

पांचवा दिन (भाई दूज)

·        दिपावली के आने वाले पर्वों में पांचवा और अंतिम पर्व है स्नेह, सौहार्द व प्रीति का प्रतीक- यम द्वितीया और भाई-दूज। पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में इसी दिन कार्तिक शुक्ल को श्री कृष्ण नरकासुर को हराने के बाद अपनी बहन सुभद्रा से मिलने गए थे. जबकि सतयुग में इसी दिन यमराज अपने दिव्य स्वरूप में बहन यमुना से भेंट करने यमुना के घर उसके आमंत्रण पर गए थे और यमुना जी ने यमराज को मंगल तिलक लगाकर उनका आदर सत्कार किया था. और स्वादिष्ट व्यंजनों का भोजन कराकर आशीर्वाद प्रदान की थी। तब से ही यह दिन भाई दूज के रूप में मनाया जाता है.

·        यह दिन भाई-बहन के प्रेम सूत्र को मजबूत करने का दिन होता है. कहा जाता है की इस दिन बहन-भाई का साथ-साथ यमुना स्नान करने से उनका स्नेह सूत्र अधिक सुदृढ़ होता है।



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