सर्व शिक्षा अभियान की शरुआत साल 2000 में स्कूलों की हालत और शिक्षा में सुधार के लिए की गई थी, लेकिन करीब 25 साल पूरे होने को हैं उसके बाद भी
धरातल पर काम नहीं हुआ है. इस अभियान के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा
चुके हैं,
लेकिन स्कूलों में ना ही
शिक्षा का स्तर सुधर सका और ना ही स्कूलों के हालात. ये सच्चाई है धनबाद से सटे एक
सरकारी स्कूल की, जहां
ना ही बच्चों के लिए बैठने की जगह है और नहीं पढ़ाने के लिए शिक्षक. सिर्फ चार
कमरों के स्कूल में पहली से आठवीं क्लास तक की पढ़ाई होती है.
कब सुधरेगा शिक्षा का हाल?
विद्या के इस मंदिर में कमी
सिर्फ बच्चों के बैठने के लिए जगह की नहीं है, बल्की यहां पढ़ाने के लिए शिक्षक भी नहीं है. स्कूलों में शिक्षकों
की कमी से जुड़ी खबर आपने बहुत सुनी और देखी भी होगी. स्कूलों में दो चार शिक्षकों
की कमी तो आम बात है, लेकिन
यहां शिक्षकों की कमी ऐसी है कि आप भी शिक्षकों की संख्या देखकर चौक जाएंगे. यहां
क्लास पहली से 8वीं
तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक शिक्षक है.
छात्र अनेक पर शिक्षक एक
बेहतर भविष्य के लिए बेहतर
शिक्षा का होना जरूरी है और बेहतर शिक्षा के लिए बेहतर शिक्षक और शिक्षा की सही
बुनियाद होना जरूरी है, लेकिन
धनबाद शहर से सटे इस स्कूल में शिक्षक के नाम पर सिर्फ भरपाई हो रही है. स्कूल में
एक मात्र प्रभारी टीचर मीणा कहती है कि कक्षा एक और दो को बच्चों का ज्यादा समय
देना पड़ता है. क्योंकि वह छोटे और शरारती हैं. खैर वो शिक्षक हैं. उन्हें तो
छात्रों के भविष्य की चिंता होगी ही. वह कहती है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए टीचर
नहीं है. बिना पढ़ाई के बच्चों का भविष्य कैसे ठीक हो सकता है. इस दौरान वो बच्चों
के भविष्य के प्रति काफी चिंतित भी नजर आयी, लेकिन
उनकी बच्चों के भविष्य के प्रति चिंता को कौन देखने वाला है और जो जिम्मेदार
अधिकारी देखने वाले हैं वो देखने को तैयार नहीं हैं. इसके लिए उन्होंने शिक्षा
विभाग को जिम्मेदार ठहराया है और विभाग से शिक्षक की मांग की है.
स्कूल में शिक्षक की मांग