चतरा के औद्योगिक नगरी टंडवा में खनन से जुड़ी 4 से ज्यादा योजनाएं चल रही हैं. जिससे ना सिर्फ CCL को हर साल करोड़ों रुपए का मुनाफा मिल रहा है बल्कि उनका व्यापार भी तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यहां के स्थानीय लोगों के चेहरे की चमक को काले हीरे की चमक ने फीका कर दिया है. कंपनियां मुनाफा कमा रही और सरकार राजस्व, लेकिन स्थानीय जनता सिर्फ अपनी जिंदगी गवां रही है.
वादा तो विकास का था, लेकिन हो विनाश रहा है. विकास तो सिर्फ उद्योगों के
हिस्से में है. ग्रामीणों के हिस्से में सिर्फ बेबसी, बीमारी और धूल से सनी जिंदगी आई है.
--- टंडवा में कोयला खनन और परिवहन में वातावरण को इतना प्रभावित कर दिया है कि
लोग शुद्ध हवा के लिए भी तरसने लगे हैं. हरियाली से भरे पेड़-पौधों धूल के गुबार
में सन चुकी हैं. जिन नदियों में कल बहता पानी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता
था. वो नदियां भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. CCL की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक आम्रपाली कोल
परियोजना से मनवाटोंगरी, कुमरांग, शिवपुर और होन्हे समेत दर्जनों गांवों में हालात
नर्क से भी बदतर है.
--- गांव से 200 - 250 मीटर की दूरी पर
निकलता कोयला भले ही सरकार और उनके नुमाइंदों को खुशी दे रहा हो, लेकिन इन गांवों के लोगों के लिए सिर्फ जहर उगल रहा
है. हवा और वातावरण के प्रदूषित होने से लोग तमाम तरह की बीमारियों का शिकार हो
रहे हैं. सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट की माने तो कुल आबादी के करीब 8% लोग टीबी, सांस, कान, और आंख से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हैं, लेकिन प्रशासन अभी भी आश्वासन देने में ही लगा है.
--- ग्रामीणों की इस
दुर्दशा के जिम्मेदार जितनी CCL और उनमें कार्यरत
कंपनियां है. उतने ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और जिले के पदाधिकारी भी है.
जिन्होंने ग्रामीणों को उनकी हालत पर छोड़ दिया है. जब सवाल किया जाता है तो
कार्रवाई का आश्वासन मिल जाता है, लेकिन सवाल तो ये
है कि क्या अधिकारियों की नजर इन गांवों पर पहले नहीं पड़ी. क्यों हर बार मीडिया
के पहुंचने पर ही हालात दुरुस्त करने का आश्वासन मिलता है.