Breaking News
26 फरवरी खास होगा.. झारखंड के लिए पीएम मोदी 226.71 करोड़ की सौगात देंगे.. 26 फरवरी को तोहफों की झड़ी  |  लोकसभा चुनाव के लिए BJP का 'लाभार्थी संपर्क अभियान' से प्लान से गांव तक पैठ बनाने की तैयारी  |  "हेमंत सोरेन ने मेरी बात मानी होती.. तो आज जेल में नहीं होते" …JMM विधायक के बगावती तेवर!  |  “आज मेरी तो कल तेरी..” भाजपा नेताओं पर भड़के झामुमो विधायक, झारखंड में सरकार गिरने की बड़ी वजह बता दी..  |  PM Kisan Yojana: हजारों किसानों को लग सकता है बड़ा झटका! अब ये करने पर ही मिलेंगे 2000 रुपये..  |  चंपई सरकार ने विधानसभा में हासिल किया विस्वास मत, पक्ष में पड़े 47 वोट  |  '..बाल बांका करने की ताकत', विधानसभा में फूटा हेमंत सोरेन का गुस्सा, ED-BJP के साथ राजभवन को भी घेरा  |  CM बनते ही एक्शन में चंपई सोरेन, 3 वरिष्ठ अधिकारियों की दी बड़ी जिम्मेदारी; लॉ एंड ऑर्डर सख्त करने की तैयारी  |  अयोध्या के लिए Special Train.. 29 जनवरी को 22 कोच के साथ रवाना होगी आस्था स्पेशल एक्सप्रेस, जानें ट्रेन का शेड्यूल  |  अयोध्या के लिए Special Train.. 29 जनवरी को 22 कोच के साथ रवाना होगी आस्था स्पेशल एक्सप्रेस, जानें ट्रेन का शेड्यूल  |  
विशेष
18/05/2018 :11:33
हिंदवी के पक्षधर : सूफी संत अमीर खुसरो
 
अमीर खुसरो जिन्हें धार्मिक एकता, हिंदू मुस्लिम सौहार्द सामाजिक जुड़ाव और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक माना जाता है, वे हजरत निजामुद्दीन ओलिया के सबसे करीबी शागिर्द थे जिन्होंने हिंदवी भाषा जो भारत में एक बहुत बड़े इलाके में बोली जाती थी और हिंदी की जन्मदात्री कही जा सकती है, की हिंदुस्तान में बुनियाद रखी ।

खुसरो की शिक्षाएं जो हिन्दवी तथा अवधी भाषा में लिखी कविताओं के रुप में पाई जाती हैं, उनमें बहुलवादी हिंदुस्तानी सभ्यता पर जोर दिया गया है । ख़ुसरो जिनका जन्म 13 वी सदी में हुआ, एक आध्यात्मिक कवि थे, ने नामवर सूफी संत हजरत निजामुद्दीन ओलिया की शागिर्दी में रहकर अपनी रूहानी जरूरतों को शांत किया। उन्होंने फारसी मे अपने कविता लिखने के मूल रूप को तरजीह देते हुए रुबाइयों एव मसनवियों को देसी ढंग से हिंदवी और अवधी भाषा में ढाला। उनके द्वारा लिखे गए दोहे ,खासकर जो उन्होंने निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु के बाद लिखे, अक्सर अपने आप में एक पूरी कहानी पेश करते हैं । खुसरो ने अपने दोहो और मसनवियों के माध्यम से वहादत-अल-वजूद जैसी सूफी अवधारणा को लोकप्रिय बनाया जिसकी इन्होंने वेदांत के ‘अद्वैत दर्शन’ के साथ तुलना की और यह समझाया कि जो कुछ भी इस भूमंडल में स्थित है वह उस अलौकिक सच्चाई के विभिन्न पहलू है जो प्रत्येक वस्तु में परिलक्षित होते हैं और अंतत: दोनों चीजें एक ही सार की प्रस्तुति
हैं। खुसरो ने भारतीय संस्कृति के सद्भावनापूर्ण मूल्यों को एक मानवीयता से भरी अवधारणा ‘खिदमत-ए-खलाव’ (मानवता की सेवा) के द्वारा आगे बढ़ाया । उन्होंने सुलह-ए-कुल प्रथा की भी शुरुआत की जिसके अनुसार ईश्वर उन सभी का दामन थामता है जो पूरी इंसानियत के खातिर उसे ह्रश्वयार करते हैं और उसकी खातिर पूरी इंसानियत उसे ह्रश्वयार करती है । खुसरो ने सुलह-ए-कुल के फ़लसफे को अपनी नज़्मों और कविताओं में बड़ी खूबसूरती से ढाला है। उदाहरण के लिए- ‘ मैं प्रेम की पूजा करता हुआ एक बहुधर्मी हु,मेरे अंदर की प्रत्येक रग एक तार की भांति तन गई है। मुझे इसमे एक किसी ‘घुमाव’ की जरूरत नहीं है जो नस्ल,हिंदू या मुसलमान के रूप में हो।’ खुसरो की नज्में और शिक्षाएं आज बहुत ही प्रसांगिक हो गई हैं जिनका इस्तेमाल सौहार्द ,परस्पर सहिष्णुता और देश में रूहानी ह्रश्वयार को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है।



झारखंड की बड़ी ख़बरें
»»
Video
»»
संपादकीय
»»
विशेष
»»
साक्षात्कार
»»
पर्यटन
»»


Copyright @ Jharkhand Life
')