आदिवासी समाज अब भी अड़ा हुआ है। बड़े आंदोलन की तैयारी भी चल रही है। विरोध और आंदोलन का मोर्चा सत्ताधारी दल झामुमो के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने संभाला हुआ है। हेम्ब्रम ने कहा है कि लड़ाई आर-पार की होगी। आदिवासी समाज के लोग वर्षों से इस इलाके में रह रहे हैं, अब उन्हें ही बलि देने से रोका जा रहा है। जमीन हमारी, पहाड़ हमारे और कब्जा किसी और का, हम कब्जा नहीं करने देंगे। लोबिन हेम्ब्रम ने कहा कि सरकार को पारसनाथ को मरांग बुरु स्थल घोषित करना होगा। अगर 25 जनवरी तक हमारी मांग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलिहातू में उपवास पर बैठेंगे। केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहां पर 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था।
संथाल समुदाय 10 जनवरी से राज्य
में बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी
अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने दैनिक भास्कर को बताया है कि हम बड़े आंदोलन की
रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसमें ओडिशा, बंगाल, असम
सहित देश के अलग राज्यों से संथाल समुदाय के लोग पारसनाथ पहुंचेंगे। अगर सरकार
मरांग बुरु को जैनियों के कब्जे से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में
विद्रोह होगा। हमारा संगठन कमजोर नहीं है, उन्होंने दावा
किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं और अध्यक्ष असम के
पूर्व सांसद पी मांझी हैं।
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद ने यह भी कहा कि हम
जिला प्रशासन या सरकार की पहल का स्वागत करते हैं। जब तक राज्य सरकार स्पष्ट फैसला
नहीं लेती, तब तक हम आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। हमारे जो
अधिकार हैं, उन्हें हम हासिल करके रहेंगे। हम देखेंगे सरकार
हमारी हिस्सेदारी दे रही है या नहीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी चिट्ठी में
जैन समाज के लिए इस महत्व के संबंध में लिखा, जबकि हमारी
धार्मिक भावनाएं भी इस जगह से जुड़ी हैं। हम सभी धर्म का सम्मान करते हैं, लेकिन
हमें लग रहा है कि हमें ही आउट किया जा रहा है। आपको बता दूँ 2019
में केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इसके बाद
राज्य सरकार ने इसे पर्यटन स्थल घोषित किया था।
पड़हा सरना प्रार्थना सभा ने राजधानी रांची में
रविवार को महासम्मेलन सह सरना प्रार्थना सभा का आयोजन किया। इस आयोजन में पारसनाथ
पर चर्चा हुई। राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के अजय तिर्की ने कहा, पारसनाथ
आदिवासियों का है। वहां पूर्व की स्थिति बहाल रखी जाए। आदिवासी सेंगेल अभियान के
राष्ट्रीय संयोजक सालखन मुर्मू ने भी इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि
संथालों के लिए पारसनाथ पहाड़ पूजा स्थल, तीर्थस्थल और
पहचान का स्थल है। जैसे हिंदुओं के लिए अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है, ईसाइयों
के लिए रोम है, उसी प्रकार भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश
आदि जगहों के संथाल आदिवासियों के लिए पारसनाथ पर्वत है। उनके मंत्र की शुरुआत ही 'मरांग
बुरु' से होती है। सरकार इसे किसी और को सौंप रही है। इसके खिलाफ बड़ा
आंदोलन होगा।
वहीं इस पूरे विवाद पर हमने सरकार का पक्ष भी
जानना चाहा। झामुमो पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य से बात करने
की कोशिश की। उन्होंने फोन पर किसी भी तरह की आधिकारिक टिप्पणी करने से इनकार कर
दिया। उन्होंने कहा, हम इस मामले को समझ रहे हैं। अभी इस मामले पर
पार्टी की टिप्पणी जल्दबाजी होगी। हम पूरे मामले को समझेंगे जो उचित होगा वही
फैसला लिया जाएगा। विधायक लोबिन हेम्ब्रम के बयान को उन्होंने उनकी निजी राय
बताया।
इस मामले में गिरिडीह के विधायक सुदिव्य कुमार ने
कहा- संथाल समाज की भी मान्यता है। उनके भी अधिकार हैं, यह
पूरी पहाड़ी किसी एक को नहीं दी जा सकती। हमारा देश तो वैसे भी सभी धर्मों का
सम्मान करना सिखाता है। पारसनाथ पर्वत मरांग बुरू था, है
और रहेगा। सैकड़ों वर्ष से चली आ रही परंपरा आगे भी बरकरार रहेगी। जैन और
आदिवासियों का संबंध तीर्थंकरों के जमाने से है। इस मामले का एक ही हल है कि पहले
की तरह स्थिति बनी रहे। इस मामले में कोई भी फैसला समस्या खड़ी कर सकता है। जैन
समाज के साथ- साथ इस इलाके में रहने वाले स्थानीय लोग और संथाल समाज की भी भावनाएं
जुड़ी है। इस मामले का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए।
पार्श्व नाथ मंदिर के पुजारी अशोक कुमार जैन ने
इस मसले पर कहा कि सम्मेद शिखर हमारा तीर्थ राज है। यह तीर्थ स्थल था, है, और
तीर्थ स्थल ही रहेगा। संपन्नता के कारण ये तीर्थ स्थल नहीं है। हमारे भगवान ने
यहां तपस्या की है। मुनिवर ने तपस्या की है। इस भूमि को पावन किया है।
सम्मेद शिखर के विवाद की शुरुआत 2022
में तब हुई थी जब यहां से शराब पीते युवक का एक वीडियो वायरल हुआ था। सम्मेद शिखर
के आसपास के इलाके में मांस-मदिरा की खरीदी-बिक्री और सेवन प्रतिबंधित है। इसके
बाद भी लोग यहां इसका सेवन कर रहे थे। जैन समाज का मानना है कि इसका प्रचलन 2019 के
बाद बढ़ा है। इसका कारण वे राज्य सरकार की तरफ से पारस नाथ पहाड़ को पर्यटन क्षेत्र
घोषित करना बता रहे हैं। मांस-मदिरा के सेवन को रोकने के लिए वे सम्मेद शिखर को
पर्यटन मुक्त क्षेत्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए वे देशभर में
आंदोलन और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध में दो जैन-मुनि देह भी त्याग चुके
हैं।
जैन समाज की विवाद को देखते हुए राज्य सरकार की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने उस नोटिफिकेशन में संशोधन कर दिया है जिसमें पहाड़ के आसपास के इलाके को इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित किया गया था। केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद जैन समाज में तो खुशी है, लेकिन अब आदिवासी समाज बड़े आंदोलन की तैयारी में जुट गया है।
आदिवासी समुदाय के बीच उपजे
गतिरोध को जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने रविवार को बैठक
कर सुलझाया। बैठक में स्थानीय विधायक सुदिव्य कुमार सोनू, उपायुक्त नमन
प्रियेश लकड़ा, एसपी अमित रेणु, एसी विल्सन
भेंगरा सहित जिले के आलाधिकारी मौजूद थे। साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधि व जैन
ट्रस्ट के प्रतिनिधि भी शामिल थे। बैठक का मुख्य एजेंडा सम्मेद
शिखर पारसनाथ को लेकर चल रहे विवाद को समाप्त करना था।
जैन ट्रस्टियों व आदिवासी समुदाय के लोगों
से राय ली गई। दोनों ओर से शांति व्यवस्था बरकरार रखने पर बल
दिया गया। दोनों तरफ से एक ही बात आई कि जो व्यवस्था पुराने समय से चली आ रही है वह आगे भी
बरकरार रहे। क्योंकि, यहां स्वामित्व का नहीं बल्कि आस्था का
मामला है। ऐसे में पारसनाथ भगवान को लेकर जितनी आस्था जैनियों
की है, उतनी ही आस्था आदिवासियों को मरांगबुरु को लेकर है। ऐसे
में एक -दूसरे की आस्था पर किसी तरह की आंच नहीं आनी
चाहिए। इस सवाल पर दोनों समुदायों की ओर सहमति जताई
गई। जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों ने भी कहा कि
फिलहाल कोई नई व्यवस्था नहीं लागू होगी। कमेटी
में सभी पक्ष रहेंगे। किसी भी तरह के वाद-विवाद को सुलझाने का प्रयास सर्वप्रथम कमेटी
करेगी। यदि कमेटी में विवाद नहीं सुलझा तो फिर कानूनी के दायरे में जाएगा।
पुरानी व्यवस्था में कोई बदलाव किया जाएगा - डीसी ने कहा
डीसी नमन प्रियेश लकड़ा ने कहा- जिला प्रशासन की मध्यस्थता में जैन कमेटी और आदिवासी समुदाय की समितियों के साथ रविवार को एक बैठक हुई थी। इसमें आम राय बनी है कि पूर्व से जो व्यवस्था चल रही है, वही लागू रहेगी। जैन समाज और आदिवासी समुदाय दोनों एक दूसरे की धार्मिक आस्था की कद्र करेंगे। अब इसमें कोई भी नई चीज लागू नहीं की जाएगी और न ही पुरानी व्यवस्था में कोई बदलाव किया जाएगा। डीसी ने बताया कि 10 जनवरी को वहां रैली की सूचना है। फिलहाल इस बैठक के बाद एक दबाव को कम किया गया है।