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साक्षात्कार

उमेश कुमार झा, झारखण्ड लाइफ। 24/12/2022 :
पंकज त्रिपाठी : “अपनी जड़ों से मुझे सादगी मिलती है… इसीलिए कभी असफलता का ख्याल नहीं आता”..
 
60 से ज्यादा फिल्में और कई टीवी शोज़ के जरिये वे हर घर में अपनी पैठ बना चुके पंकज त्रिपाठी…ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। बिहार के गोपालगंज में एक छोटे से गांव में जन्मे पंकज त्रिपाठी आज भी अपनी जड़ों से पूरी तरह जुड़े हुए हैं। चाहे ‘मिर्जापुर’ के ‘कालीन भइया’ जैसे नेगेटिव रोल हों या ‘बरेली की बर्फी’ का सौम्य-सरल पिता…उनका हर किरदार लोगों को पसंद आता है। सिर्फ एक्टिंग ही नहीं, वास्तविक जीवन में उनका किरदार ऐसा है जो हर किसी के मन में बस जाता है। अपनी सादगी की वजह से उन्होंने एक अलग पहचान बनाई है।

लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि ऐसा क्या है जो आपको अपनी जड़ों से जोड़े रखता हैमेरे लिए सवाल बड़ा अजीब है। क्योंकि जड़ों से जुड़ने की कोशिश उसे करनी होती है जो जड़ों से दूर हुआ होमैं तो कभी अपनी जड़ों से दूर हुआ ही नहीं। मेरी परवरिश ही वो मूल तत्व है जिससे मैं बना हूं। मेरी नींव मेरा बचपन है जो अब दिखता नहीं है। अभी इमारत दिख रही हैपंकज त्रिपाठी अभिनेता दिख रहा है। लेकिन ये पंकज त्रिपाठी उस परवरिश का ही नतीजा है।

हर व्यक्ति अपने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और धार्मिक माहौल में पल-बढ़कर किसी मुकाम तक पहुंचता है। जैसा खाद-पानी, हवा और मौसम मिलेगा, वैसे ही फल-फूल लगेंगे। हर पौधे की एक तासीर होती है, एक मूल तत्व होता है। मेरी परवरिश की यही तासीर थीसादगी। जो अब छूट नहीं सकती। मैं सफल होता या नहीं होताऐसा ही रहता। आपके रहन-सहन, खान-पान में आपकी परवरिश ही झलकती है। मैं आज भी ज्यादातर कपड़े हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट और खादी के पहनता हूं। मुझे अच्छा लगता है, किसी बुनकर के हाथों से निकला कपड़ा। इसीलिए यही मंगाता हूंकभी कर्नाटक से, कभी कच्छ से। हर किसी की अपनी बनावट होती है, अपना मूल तत्व होता हैमेरी ही तरह।

मैं जो भी हूं, उसमें मेरे अनुभवों का योगदान है। कई किताबों, शिक्षकों, अखबार के संपादकीय पन्नों, उपन्यास, कविताओं और कहानियों का योगदान है। मेरा मानना है कि जड़ों से जुड़ाव खत्म हो जाएगा तो आदमी टूट जाएगा। बिल्कुल वैसे ही जैसे पौधा जड़ से कट जाता है तो सूख जाता है। मैं जड़ से उखड़ा नहीं हूं, आज भी जुड़ा हूं। मैं अपने घर जाता रहता हूं, रोज के किस्से-खबर मुझ तक पहुंचते रहते हैं। अपना हर अनुभवजीवन का हर किस्सा मुझे याद रहता है, किसी सिनेमा की तरह। बहुत सारे किस्से हैंमैं तो वैसे भी किस्सागो हूं। यही किस्से मुझे आज भी प्रेरणा देते हैं, मैं आज भी इनसे सीखता हूं। मैं जीवन की कोई भी बात भूला नहीं हूं। इसी जुड़ाव की वजह से मुझे हमेशा से बहुत स्पष्ट रहा है कि मैं क्या करना चाहता हूं। मेरे मन में ये कभी नहीं आया कि एक्टिंग के अलावा कोई और काम करूं। मुझे पूरी उम्मीद थी कि एक दिन मैं इसी काम से अपनी जीविका चलाऊंगा।

संघर्ष के दौर में पत्नी कमा रही थी। बेसिक जरूरतें पूरी हो जाती थीं। लेकिन कभी भी ये सोचा ही नहीं कि सफल नहीं हुए तो क्या होगा। दरअसल, सफलता-असफलता की बात कभी दिमाग में आई ही नहीं। मुझे लगता है कि ये सिर्फ नजरिये का फर्क है। आज हम सभी पैसा कमाने की दौड़ में लगे हैं। इसी पर सफलता-असफलता आंकते हैं। मगर कोई सफल आदमी भी दुखी हो सकता हैऔर कोई असफल व्यक्ति भी बहुत खुश रह सकता है। मैं जीवन को कभी इतना प्लान करके नहीं चलतासिर्फ आनंद लेता हूं। मैं जानता हूं कि मुझे क्या करना है। इसलिए कभी दिमाग में ये विचार ही नहीं आया कि अब क्या होगामैं अब क्या करूं।

एक्टिंग मेरा पैशन हैमगर मैं जानता हूं कि सिर्फ पैशन काफी नहीं होता। स्किल भी जरूरी है। पैशन मुझमें था, मैं अपना स्किल बढ़ाने पर काम करता रहा। कभी तनाव होता भी था तो रनिंग करता या फिर योग करता। सही कहूं तो तनाव लेने के लिए मेरे पास समय ही नहीं होता। मुझे दुनिया की तमाम चीजों में रुचि है। इसीलिए मैं कभी बोर नहीं होता। जीवन रोज रिपीट होता है। डेली नहाना है, खाना है, सोना है, काम पर जाना है। तो जीवन ही बोलता है कि कभी एक चीज से बोर नहीं होना है, उसमें नया तलाशना है।

मुझे कभी भी नेगेटिव विचार नहीं आते कि मैं क्या करूंगा। जब आजकल लोग ये सवाल करते हैं कि मैं हौसला हारा तो क्या करूंगाये सुनकर लगता है कि ओह, ये भी जीवन का हिस्सा है क्या? मैं समझ नहीं पाता कि क्या उत्तर दूं।

मैं तो यही कह सकता हूं कि अपना नजरिया बदलिए। आप सफल हैं या असफलये पैमाना आप ही तय करते हैं। हमेशा याद रखिए कि आपने कहां से शुरू किया थाऔर क्यों शुरू किया था। अगर आप अपनी इन जड़ों से जुड़े रहे तो कभी यह सवाल जेहन में आएगा ही नहीं किअब मेरा क्या होगा।



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