23 साल की उम्र में UPSC टॉप करने वाले अक्षय ने
बताई अपने संघर्ष की गाथा !
न्यूज़ ग्राउंड (नई दिल्ली) आकाश मिश्रा : "टॉपर्स न चांद से उतरते हैं न किसी और जहां के होते हैं। हम
में से ही एक होते हैं वो लोग जिनकी सफलता की मिसालें दुनिया देती है। कुछ साल
पहले तक जब ऑडिएंस में बैठ पीएससी टॉपर्स को सुनते थे, तो सोचते थे पीएससी टॉपर्स हैं। ये तो अलग
ही होंगे। सोशल लाइफ से दूर, बंद कमरे में हर रोज 14-16 घंटे पढ़ते होंगे। आज ऑडिएंस से स्पीकर तक का सफर तय कर लिया
है तो कह सकते हैं कि नहीं, टॉपर्स में अलग कुछ नहीं होता। ने
वे 14-16 घंटे पढ़ते हैं, न ही दुनिया से कट जाते हैं। फर्क
सिर्फ इतना है कि उनका लक्ष्य उनकी आंखों से कभी ओझल नहीं होता। थोड़े जिद्दी होते
हैं और जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए कोशिश करते ही रहते हैं।'यह थी कॅरियर की पाठशाला। माय एफएम व
कौटिल्य एकेडमी की ओर से रविवार को लगाई गई इस पाठशाला में यूपीएससी टॉपर्स रूबरू
थे उन युवाओं के जो सिविल सर्विसेस में जाना चाहते हैं। माय एफएम और कौटिल्य एकेडमी की
इस पाठशाला में टॉपर्स ने एग्ज़ाम से जुड़े वो भ्रांतियां भी दूर कीं जो कैंडिडेट्स
को मिसगाइड करती हैं। डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने जगजीत सिंह, माउंटेन मेन दशरथ मांझी, शूटर केरोली के उदाहरण दिए, जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल
किया। कार्यक्रम में माय एफएम के नितेश भाटिया, कौटिल्य एकेडमी के श्रीद्धांत
जोशी और आशेन्द्र मिश्रा भी मौजूद थे। 20 की उम्र में डीएसपी बनने के बाद 21 साल की उम्र में डिप्टी कलेक्टर बनने वाले अक्षय सिंह ने अब
23 साल में यूपीएससी भी टॉप कर ली है। उन्होंने कहा- मुझे गाड़ी के आगे लगी लाल बत्ती आकर्षित करती
थी। सिविल सर्विसेज में जाना है यह तय था। 12 वीं रिजल्ट के पहले ही पीएससी की
काउंसलिंग शुरू कर दी थी। आईआईएम में चुन लिया गया था लेकिन निजी कॉलेज से बीकॉम
किया। कॉलेज भी सिर्फ एग्जाम देने गया। मैं राह न भटकूं इसलिए रोज
कलेक्टर केब बंगले के सामने से गुज़रता और खुद से वादा करता कि एक दिन यहां रहने
आना है। इससे मोटिवेशन मिलता था। किताबी कीड़ा नहीं बना मैं कभी। थोड़े में बताऊं तो
दृढ़ इच्छाशक्ति, नियमित पढ़ाई और टाइम मैनेजमेंट
मेरा सक्सेस का फॉर्मूला रहा। यह सब करते सब हैं, लेकिन कौन इसे लक्ष्य पूरा करने
तक कर पाता है वो मायने रखता है। यूपीएससी टोपर वैभव गुप्ता इंदौर के हैं।
उन्होंने बताया "स्कूली शिक्षा सांवेर के हिंदी मीडियम स्कूल से हुई।
गुड़गांव में नौकरी के दौरान पहली बार सिविल सर्विसेस के बारे में सुना। जॉब से
संतुष्ट नहीं था इसलिए नौकरी छोड़ पीएससी की तैयारी की। यह कोई कठिन परीक्षा नहीं
है। बस सही मार्गदर्शन चाहिए। जिन पर भरोसा हो सिर्फ उन्हीं की बात मानें। अपनी गलतियां हमसे बेहतर कोई नहीं जानता। उन्हें ढूंढना है
और सुधारकर आगे बढ़ते जाना है। जिस भी सोर्स से पढ़ रहे हो उस पर भरोसा करना और
थोड़ा जिद्दी बनना, ताकि खुद को ही चैलेंज कर सको। ये चीज़ें भी मदद करती हैं। गुना के अर्पण यदुवंशी आईपीएस
टॉपर हैं। वे कहते हैं- स्कूल-कॉलेज में ब्रिलिएंट स्टूडेंट था मैं। यूपीएससी आसान
लगती थी, लेकिन मेन एग्जाम के रिज़ल्ट ने
सारे भ्रम तोड़ दिए। इससे हुआ यह कि अब ओवर कॉन्फिडेंस में आकर तो कोई गलती ताउम्र
नहीं होगी। एमपीपीएससी टॉपर रहे आशुतोष गर्ग ने कहा- सिविल सर्विसेज एग्जाम क्रेक
करनी है तो अपनी स्किल्स पहचानें। जिस विषय में आपकी रूचि है उससे
जुड़ी सभी जानकारी जुटाएं। क्या मैं कर पाऊंगा? क्या मुझ में क्षमता है? ऐसे सवाल दिमाग से निकाल देना। गंभीरता और मेहनत बहुत जरूरी
है। छोटे-छोटे लक्ष्य बनाएं और उन्हें हासिल करें। इससे तनाव नहीं आता।
वे बातें जो कैंडिडेट्स को मिसगाइड करती हैं
Q. यूपीएससी में सवाल कहीं से भी पूछ लिया जाता है?
A. ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसका प्रॉपर सिलेबस है, और उसी में से सवाल पूछे जाते हैं, कई बार टि्वस्ट करके पूछ लेते हैं बस।
Q. सिविल सर्विसेस में ब्रिलियंट स्टूडेंट ही जा पाते हैं।
A. यह सोचना भी गलत है। इसमें बेहद एवरेज स्टूडेंट भी होते
हैं। वे स्टूडेंट जो कुछ अलग करने की ललक रखते हैं, वे इस क्षेत्र में जा सकते हैं।
Q. इंग्लिश मीडियम वालों को मौका ज्यादा मिलता है?
A. इंग्लिश मीडियम स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा होती है, अपेक्षाकृत हिंदी स्टूडेंट्स के। एक कारण यह भी है कि
अंग्रेजी में स्टडी मटेरियल ज्यादा है, हिंदी में नहीं। भाषा अड़चन नहीं
है। लेकिन अंग्रेज़ी भी आती होगी तो अच्छा ही है।
Q. क्या एक साल पर्याप्त है इसकी तैयारी के लिए ?
A. एक साल में कवर करना मुश्किल है, यदि ऐसा सोचकर आएंगे तो प्रेशर में आ जाएंगे। पेशेंस पहली
शर्त है।
Q. क्या दिल्ली जाना जरूरी है?
A. नहीं, दिल्ली में लेटेस्ट मटेरियल मिल
जाता है, लेकिन अब यह अन्य जगहों पर भी
उपलब्ध है।