Jharkhand News: झारखंड में भले ही चुनाव की घोषणा अभी नहीं हुई है लेकिन राजनीतिक परिदृश्य तेज़ी से करबट लेने लगा है।कई दिनों की हां ना के बाद आखिरकार चंपई सोरेन के अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन के साथ भाजपा ज्वाइन करने का निर्णय इस घटनक्रम की ताज़ा कड़ी है। हालांकि इस पूरे परिदृश्य की पटकथा बहुत पहले ही लिख दी गई थी लेकिन खुद चंपई सोरेन द्वारा बार बार इसका खंडन कई सवाल खड़े करता है।इस माह की 15 तारीख के बाद ही चंपई सोरेन के भाजपा में जाने के कयास लगाए जाने लगे थे।उनके दिल्ली दौरे ने तो इसकी पुष्टि तक कर दी थी लेकिन चंपई सोरेन द्वारा दिल्ली में भी पत्रकारों से बातचीत में इसका खंडन करते हुए कहा गया था कि ‘ हम कहीं नहीं जा रहे है जहां है वहीं रहेंगे‘। फिर खबर आई कि चंपई सोरेन कुछ विधायकों के साथ कोलकाता के रास्ते दिल्ली कूच करने वाले हैं। लेकिन किन्हीं कारणों से तब भी बात नहीं बनी।
बाद में असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्व सरमा के साथ चंपई सोरेन अपने पुत्र बाबूलाल सोरेन के साथ दिल्ली पहुंच कर गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करते हैं और भाजपा में शामिल होने के अपने निर्णय की औपचारिक घोषणा कर देते हैं।इससे पहले भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इसी कड़ी में दिल्ली पहुंच कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर राज्य की चंपई सोरेन एपिसोड पर उन्हें फीड बैंक दिया था हालांकि बाबूलाल मरांडी द्वारा इसे एक शिष्टाचार भेंट बताया गया था। जो भी हो इस पूरी कवायद की परिणति अब सामने है और चंपई सोरेन अपने बेटे बाबूलाल सोरेन के साथ झारखंड की राजधानी रांची में आज भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन को पत्र लिख कर उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। लेकिन लगभग एक सप्ताह तक चले इस ऑपरेशन के दरम्यान अंत तक राज्य मंत्रिमंडल में बने रहना क्या बतौर कैबिनेट मंत्री पद की गोपनीयता के शपथ पर सवाल खड़े नहीं करता है?
जो भी हो शाम दाम दण्ड भेद के जरिए किसी को भी अपनी पार्टी को छोड़ने या तोड़ने के लिए मजबुर करने की नीति भाजपा के लिए अब पुरानी बात हो चुकी है।
इस पूरी घटनाक्रम की परिणति यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन झारखंड में अब भाजपा का एक नया चेहरा बन गए हैं। झारखंड भाजपा में अब पूर्व मुख्यमंत्रियों की संख्या चार हो चुकी है। भाजपा के इस ताज़ा मास्टर स्ट्रोक का सियासी नफा नुकसान राजनीतिक विश्लेषण का विषय बन गया है। इतना तो तय है कि भाजपा झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और सोरेन परिवार को मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती रही है यही कारण है कि अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए भाजपा इन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करने की रणनीति को प्राथमिकता देती रही है।लोकसभा चुनाव के समय जेएमएम की विधायक और शिबू सोरेन की बहू सीता सोरेन को पार्टी में शामिल कर उन्हें दुमका संसदीय क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतारने की कवायद इसी की एक कड़ी मानी जाती है। हालांकि परिणाम वैसा नहीं हुआ जैसा पार्टी ने सोंच रखा था। ताज़ा प्रकरण में भी चंपई सोरेन को सामने रख राज्य में नए समीकरण गढ़ने की रणनीति अपनाई गई है। हालांकि इसका परिणाम क्या होगा यह तो समय बताएगा लेकिन पार्टी में गैर भाजपाइयों की भरमार निष्ठावान पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराज़गी का कारण भी बन सकती है, इस बात से तनिक भी इंकार नहीं किया जा सकता है।