23.1 C
Ranchi
Thursday, November 21, 2024
Contact: info.jharkhandlife@gmail.com
spot_img
HomeNational Newsइलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘संविधान हत्या दिवस’ की घोषणा पर केंद्र से...

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘संविधान हत्या दिवस’ की घोषणा पर केंद्र से जवाब मांगा !

spot_img

प्रयागराज.  इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित करने की 13 जुलाई की अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। झांसी के अधिवक्ता संतोष सिंह दोहरे द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने केंद्र से जवाब मांगते हुए इस मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई तय की है। सोमवार को इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के अधिवक्ता ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा जिस पर अदालत ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। इस जनहित याचिका में 13 जुलाई की भारत के राजपत्र में प्रकाशित इस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की गई है। अधिसूचना में कहा गया है कि 25 जून 1975 को आपातकाल लागू कर तत्कालीन सरकार ने लोगों के अधिकारों का जबरदस्त हनन किया। वहीं याचिका में दलील दी गई है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना सीधे तौर पर भारत के संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है और साथ ही राष्ट्रीय सम्मान का अपमान रोकने वाले 1971 के अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन करती है।

Follow WhatsApp Channel Follow Now
Follow Telegram Channel Follow Now

याचिका में कहा गया है कि इस अधिसूचना में प्रयुक्त भाषा भारत के संविधान का अपमान करती है क्योंकि 1971 के अधिनियम के अनुच्छेद दो के मुताबिक, संसद ने यह घोषणा की है कि बोलकर या लिखकर शब्दों से संविधान के प्रति अपमान प्रदर्शित करना एक अपराध है।

इसमें कहा गया कि 1975 में संविधान के प्रावधानों के तहत आपातकाल लागू किया गया था इसलिए प्रतिवादियों द्वारा 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ घोषित करना गलत है क्योंकि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो कभी मर नहीं सकता और न ही किसी को इसे नष्ट करने की अनुमति दी जा सकती है।

याचिका में गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव जी. पार्थसारथी द्वारा यह अधिसूचना जारी करने के पीछे के औचित्य पर भी सवाल खड़ा किया गया है जिसमें कहा गया है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर पार्थसारथी भारत के संविधान के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

याचिका में यह भी दलील दी गयी है कि , ‘‘प्रतिवादी (केंद्र) की सभी कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 77 के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति के नाम पर होनी आवश्यक है। हालांकि, उक्त अधिसूचना अनुच्छेद 77 का अनुपालन नहीं करती। इस प्रकार से यह अनुच्छेद 77 का उल्लंघन है। एसडीआरएफ के मुसलमान कर्मी ने पांच कांवड़ियों को गंगा में डूबने से बचाया

Follow WhatsApp Channel Follow Now
Follow Telegram Channel Follow Now
spot_img
उमेश झा
उमेश झा
संवाददाता, झारखंड लाइफ, उमेश झा युवा पत्रकार हैं, और झारखंड लाइफ से जुड़े हैं ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

--Advertisement--spot_img

Latest News

spot_img
Floating WhatsApp Button WhatsApp Icon